Monday, 30 January 2023

कुत्ते की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of Dog Essay In Hindi)

कुत्ते की आत्मकथा पर निबंध (Autobiography Of Dog Essay In Hindi)


में एक अभागा कुत्ता हूँ। में आपके गली – मोहल्लेमें पाया जाता हूँ। आज में आप लोगों को अपने जीवन की कहानी बताना चाहता हूँ और थोड़ी शिकायत भी करना चाहता हूँ। 


मेरा जन्म एक छोटे से शहर में हुआ था। मेरे साथ मेरे और चार भाई-बहन भी थे। हमारी माँ हमे बहोत चाहती थी और हमारा अच्छा ख्याल रखती थी। में अपने बचपन में बहोत प्यारा दिखता था। मेरा काला चमकता रंग सबको लुभाता था। गली के बच्चे मुझे और मेरे भाई – बहनों को अपने घर ले जाते थे और हमारे साथ खेलते थे। वे हमें दूध, रोटी, बिस्कुट आदि खिलाते थे। बच्चे मुझे ‘कालु‘ कहकर बुलाते थे। मेरे दिन खुशी से बीत रहे थे।  


एक दिन मोहल्ले में एक बच्चे के घर महेमान आए थे तो उनके बच्चे को में पसंद आ गया तो वे मुझे अपने साथ ले गया। में बहोत दुखी और उदास हो गया क्योंकि में अपनी माँ और भाई-बहनों को छोडकर नहीं जाना चाहता था लेकिन मेरी एक न चली और में अपने भाई – बहन और माँ से अलग हो गया। 


वह बच्चा मुझे अपने घर ले गया और अपने दोस्तों और परिवार से मिलवाया। सब मुझे देख बड़े खुश हो गए। मेरा नाम बदलकर ‘रोकी‘ रखा गया और मेरे गले में एक प्यारा सा पट्टा भी लगाया गया। मेरे लिए घर के आँगन में एक छोटा से घर भी बनाया गया। में बहोत खुश था। थोड़े ही दिनों में सब से घुल – मिल गया। सब मुझे प्यार करते थे और मेरा अच्छा खयाल रखते थे। मेरे मालिक रोज सुबह मुझे घूमाने ले जाते थे। मेरे लिए अलग से खाना और बिस्कुट भी मंगवाया जाता था। कभी कभी सब मुझे अपने साथ गाड़ी में भी घूमाने ले जाते थे। में भी बड़ी वफादारी से मालिक के घर का ध्यान रखता था। अगर कोई भी अंजान आदमी घर के आसपास भी दिख जाए तो में ज़ोर से भोंकना शुरू कर देता था और सबको सचेत कर देता था। एक बार तो मेंने अपने मालिक के घर  चोरी करने आए चोर को काट लिया था और चोर को पकड़वा दिया था। उस दिन सब मुज पर गर्व करने लगे थे। इस तरह हंसी-खुशी से मेरे दिन बीत रहे थे। 


कुछ साल तो मेरे अच्छे से बीते थे लेकिन अब में बूढ़ा होने लगा था। मे अब पहेले जैसे काम नहीं कर पाता था। मेरे मालिक को मेरी मौजूदगी खलने लगी और वह दूसरा विदेशी कुत्ता ले आए और मुझे घर से निकाल दिया गया।  


आज में दर – दर ठौकरे खा रहा हूँ। कहाँ जाऊँ यह भी समजमें नहीं आ रहा। दूसरी गली के कुत्ते मुज जैसे अंजान कुत्ते को देखकर भौकते हैं और मुझे भगा देते हैं। में कूड़े – कचरे में फेंकी हुई रूखी – सुखी रोटी खाकर अपने दिन बिता रहा हूँ और अपनी मौत का इंतझार कर रहा हूँ। मेरा आप से एक ही सवाल है क्या मानवजात इतनी मतलबी है की अपना मतलब निकलते ही वह किसीकी सालों की वफादारी तक को भूल जाती हैं? मेरी अब एक ही तमन्ना है की मेरे मालिक के कानों तक मेरी व्यथा पहुँच पाए और वह मुझे वापस अपने घर ले जाए। यही आशा रखकर में अपने जीवन के बाकी दिन काट रहा हूँ।

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