हमारे जीवनकाल को चार अवस्थामें बांटा गया है। वे चार है – बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृध्धावस्था। वृध्धावस्था को हमारे जीवनकाल का आखरी पड़ाव माना गया है। वृध्धावस्था स्वयं एक समस्या है। हमारी इस अवस्था में धीरे धीरे हमारी इंद्रियाँ काम करना छोडने लगती है। ऐसे में शरीर साथ देना छोडने लगता है। हमें अपने छोटे – बड़े कामों में दूसरों का सहारा लेना पड़ता है। ऐसे मे अगर हमारे अपने हमारा साथ छोड़ देते है तो जीना मुश्किल हो जाता है। वृध्ध्वस्था की सबसे बड़ी समस्या है अकेलापन और घर के सदस्यों का तिरस्कार। ऐसे हालातों में घर के वृध्धों की हालत घर में पड़े एक निर्जीव सामान की तरह हो जाती है।
समय के साथ हमारी समाजव्यवस्था में और कुटुंब व्यवस्थामें बड़ा बदलाव आ गया है। आज संयुक्त परिवारों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। घर के वृध्धों की तरफ हमारी सोच बिलकुल बदल गयी है। पुरानी और नयी पीढ़ी के विचारभेद के कारण परिवार टूट रहे हैं। हम घर के बड़ों का सन्मान करना भूल जाते है। स्वतंत्रता और नयी सोच के पीछे भागते हम अपने परिवार के बड़ों को पीछे छोडने लगे हैं। कमाने की होड में बच्चे अपने माता-पिता को छोड़ शहरों में अकेले रहना पसंद करने लगे हैं। बच्चे माता – पिता को धोखा देकर उनकी संपत्ति हड़प कर ले�
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